पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/३२

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पुरानी हिंदी लिखा गया, दीजिए (दिज्जिय, दोर्ज, दिज्ज) पहले कर्मवाच्य प्रयोग या, पीछे कर्तृवाच्य हो गया । दालिद्दिहि-मिलानो ग्राम्य दलिद्दर, दलिद्दरी। डुविधर- संस्कृत धातु चुड है जो देशी से बनाया जान पड़ता है, हिंदी में डूबना, वूडना दोनो रूप है, व्यत्यय का उदाहरण है। दुत्थियउ-दु स्थित । मुहिज्ज--- छोडिए, छोडा जाय, देखो ऊपर, कहिज्ज । शास्त्री इसका अर्थ 'मोचित' छोना (छोड़ा गया) करते हैं। ( २ ) कच्छ के राजा लया' को कपिलकोटि के किले मे मूलराज ने घेर लिया। लापाक (लाखा) बहुत से बोधवाक्य कहकर रणभूमि में उतर पाया और वीरता दिखाकर काम पाया। उन बोध-वाक्यो मे से एक यह दिया है- कग्या ताविउ जहि न किउ लक्खउ भण्इ निघट्ट । गरिगया लन्मइ दोहढा के दहक अहवा भट्ट । इस दोहे को यदि कुछ नई लिखावट में बदलकर लिख दे तो यह इतना बेगाना नही जान परेगा- १. यह कच्छ का प्रसिद्ध राजा लाखा फूलागी [ फूल का पुत्र था] जिनका नाम धनाढयता तथा उदारता के लिये प्रसिद्ध है। यह जाया जाति मे चद्रवशी यादवो मे से था। मूलराज के हाथ से इनको मृत्यु का बाल पुरानी गुजराती कविता के अनुसार कार्तिक शुक्ल ८ शुक्रवार का स० ६०१ [वि० स० १०३६-ई० स०६८०] है । कन्नौज के राठोट राग जयचद के पोते या पड़पोते सियाजी का मूलराज की कन्या से विवाह होना तथा इसके प्रत्युपकार में सियाजी का लासा फूलाणो को मारना आदि कथा अप्रामाणिक है क्योकि सिवाजी के दादा या पडदादा जयचंद का समय वि० सं० १२५० [ई० स० ११६३] है । हमने नियाजी का समय वि० स० १३०० के पीछे पाना चाहिए । उस समय नाया तथा मूलराज को हुए तीन सौ वर्ष हो चुके थे। [देखो ५० गौरीगर हीराचद अोझा का लेख 'लाखा फूलारणी का मारा जाना', समालोदय (जयपुर) जनवरी-फरवरी. १९०४ ] | मूलराज रा राज्याभिपेर दि० सं०१०१७ में होना प्रामाणिक है।