पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/३०

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'पुरानी हिंदी २५ ) जो पुल्लिग के कर्ता के एकंवचन के चिह्न (संस्कृत 'म या:) का अपभ्रंश है। अब इस विषय को अधिक न वढाकर प्रसंग की बात पर पाते हैं 'कि इस काल की जैन संस्कृत में भी वर्तमान घातुज विपण का क्रिया की तरह काम देना पाया जाता है-यथागत व्रजामीत्यापृच्छतस्मि (प्र. चि० पृ० ११), नृपस्तस्य सौधमलकुर्वन् (पृ० ५५), वदिन.श्रीसिद्धराजम्य कीति- विक्षन्वत (पृ. १८२) इत्यादि । देशभाषा में सोचनेवाले कवि ने उसकी छाया सस्कृत मे पहुँचा दी और सस्कृत को स्थिर भाषा में भी समय की गति का प्रभाव पड़ा । वर्तमान धातुज विशेषण 'होना' पिया के वर्तमान के रूप के साथ वर्तमान किया का काम देने लगा और भूतकालिक धातुज विशेषण (निष्ठा, था-थी, हतो-हती, भयो, भयो) के साथ भूतकाल का। 'या' और 'हता अस् (अस्ति) के हैं, और भया, भू (भवति) का । अर्व प्रबंधचिंतामणि का कुछ पानी' देखिए- (१) । अम्मरिणनो सदेसडनी तारय कन्ह कहिज्ज । जग दालिदिहि डुब्धि बलिवधरणह मुहिज्ज ।। पाठातर-पुरानी जैन पोथियो मे मो मो को उउ लिखते थे। उनके धोखे मे आकर छापनेवाले कही प्रो छाप देते हैं। शुद्ध पाठ छद को मानानी के अनुसार पढना चाहिए । प्रउ और प्रा पुरानी लिखापट है, उनकी जगह श्रो और ऐ पिछली, जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है। इसलिये यहाँ पर अम्मणिपउ, सदेसडर, इनिघउ, पार उचित है, पीछे से लेखको को मुखसुखानुकारी लिखावट से वे अम्मरिणयो, सदेसडो चिनो हो गए होगे जो कविता की हिदी से बहुत दूर नहीं हैं। ऐसे ही जैन पोपियो मे 'स्व'छ' 'झ' 'बम' 'त' 'म' सदृश लिखे हुए मिलते हैं, अतएव ऐने पाठातर मोई पाठातर नहीं हैं, पुरानी लिपि के ठीक ठीक न पढन से उपजे हुए भममाल है । शास्त्री तथा टानी के संस्करणों मे जो पाठातर दिए हैं उनमे से हमने यहाँ . . १. हिंदी में पानी मोती को प्रोप के लिये ही प्राता है फितु गणरत्नमहोदधि मे वर्धमान ने एक उदाहरण 'भुजगमस्येव मरिण सदभाः' पैकर मणि के लिये भी प्रभः (पानी) का प्रयोग दिखाया है ।