पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/१६

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पुरानी हिदी ११ यह पुरानी कविता विखरी हुई मिलती है कोई मुक्तक शृगार रम की कविता, कोई बीरता की प्रशसा, कोई ऐतिहासिक वात, कोई नीति का उपदेग, कोई लोकोक्ति और वह भी व्याकरण के उदाहरणो मे या कथाप्रमग में उद्धृत । मालूम होता है कि इस भाषा का माहित्य बडा था । उसमे महाभारत और रामायण की पूरी, या उनके पाश्रय पर बनी हुई छोटी छोटी कथाएँ थी। ब्रह्म और मुंज नाम के कवियो का पता चलता है। जैसे प्राकृत के पुराने रूप भी शृगार की चटकीली मुक्तक गाधामो मे (मातवाहन की सप्तशनी) या जैन धर्मग्रयो मे हैं, वैसे पुरानी हिंदी के नमूने भी या तो शृगार या वीर रम के अथवा कहानियो के चुटकुले हैं या जन धार्मिक रचनाएँ । हेमचद्र को बढी बड़ाई कीजिए कि उमने प्राकृत उदाहरणो मे तो पद वा वाक्यो के टुकड़े ही दिए, पर ऐसी कविताग्रो के पूरे छद उद्धृत किए । इसका कारण यही जान पडता है कि जिन पडितो के लिये उसने व्याकरण यनाया वे साधारण मनुष्यों को "भाखा कविता को वमे प्रेम मे नही कठम्य करते ये जने सम्मृत और प्राकृत को। सस्कृत के श्लोक और प्राकृत की गाथा की तरह इन कबि का गजा दोहा है। सोरठा, छप्पय, गीत प्रादि पार छद भी है, पर इधर दोहा और उधर गाथा ही पुरानी हिंदी और प्राकृत का भेदक है । 'दोहा' का नाम व मातानिमानियों ने 'दोधक" बनाया हैं कितु शाब्दिक समानता को छोडकर उनने को मार नहीं है और सस्कृत मे दोधक छद मरा होने में इनमे धोको गामग्री भी हैं। दोहा पद को निरुक्ति दो की सस्या से है, जैसे चौपाई और छप्पय को-दो+ पद, दो+ पथ, या दो+गाथा । प्रबधचितामरिण में एक जगह एका प्राकृन या 'दोधक' भी दिया है जो दोहा छद मे है । पूर्वाधं सपादलक्ष (प्रजमनाभर) के राजा ने समस्या की तरह भेजा था और उत्तराई को पूनि मनाने की थी। यह ऐसा ही विरल विनोद जान पडता है जना कि भाजगल हमारे मित्र भट्ट मथुरानाथ जी के नस्कृत के मनहर दडक पर मर । चिता- मणि मे ही एक जगह दो चारणो को 'दोहाविद्यया स्पर्धमानी' मात् पोहा विद्या से हडाहोडी करते हुए कहा गया है । उनको पविनायो में एक दोहा १ प्रवचितामरिण, पृ० ५६, १५७ । २. पइली ताव न अनहरा गोरीमुहकमलरस । अदिछी पुनि उनमा पतिपयली चदस्स ॥ [प्र.दि.१०९५७) ।