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पुरानी हिंदी ९१० ३०० लेखको से तीन वर्ष तक प्रतियाँ' निवाकर ग्राम्ह शो में उन. पाठन के लिए भेजी। उधार हेमचद्र और देशी युव (न्) ( = जवान ) के तारतम्यवाचक रूप यवीगन् यदि और अल के अल्पीयस् और अल्पिष्ठ होते है 1 न्ही प्रयों में सनीपर श्री. निल भी होते है । पाणिनि का इस बात के कहने का टग यह है कि अल्प की जगह विकल्प मे कन् हो जाता है। इसमा ऐतिहानि यार कि पाणिनि के ममय मे अकेला कन छोटे के अर्थ में नहीं माना ग, कित इसके तारतम्यवाचक रूप आते थे । वैयाकरणों की नहीं की गा कि पाणिनि के सूत्र से अल्पीयम् और यवीयस् की जगह कनीयम्, और अपिल और यविष्ठ की जगह कनिष्ठ हो जाता है । यह कुछ नहीं होता, व्याकरण के सूत्र कोई नई चीज नहीं बना सकते । वे जो है उसी को नियम में रण देते हैं । 'अमुक सूत्र से ऐसा हुआ' इसकी जगह वैज्ञानिक रोनि ने की कहना चाहिए कि "ऐसा भाषा में होता है, उसका उल्लेख अमुक सूत्र में कर दिया है। कन् का जिसका अर्थ छोटा है, अले विशेपण मी तरह उस समय सस्कृन मे व्यवहृत होना छूट गया हो। 'कन्या मे वह मोजूद है । कन्या का पुत्र 'कानीन' बनाने के लिये पाणिनि ने पन्या की जगह 'कनीन' मानकर प्रत्यय लगाया है । वह बाम पन् गे प्रत्यय लगाकर भी हो सकता था, यदि 'कन्' की सत्ता पारिपनि मानना । नेपाली कान्-छा (छोटा), हिदी कन् + अंगुरिया, नारंगी की फनी फांग प्रादि मे वह कन् चलता आया है । यो हो जहाँ पाणिनि ने 'नू' के कुछ रपी की १ कई मस्कृताभिमानी मातृका, कोष या प्रतिकृति की जगह प्रति मिने के लिये म० म. सुधाकर द्विवेदी की मी किया करते हैं किन्तु जगमा देशभाषानुगामी संस्कृत में यह शब्द स० १४६२ ने मिलना है। जिन- मडन ने प्रतय , प्रती, कई वार लिखा है । २ अट्ठारह देश-कर्नाट, गुर्जर, लाट, सौराष्ट्र, कच्छ, निध, उग, भगे मरु, मालव, कोकण, राष्ट्र, कोर, जामघर मपादन मेवातीप, भाभीर [ जिनमडन का कुमारपालप्रवध, पन्न १ (१) ३ ५।३।६४। ४।१।११६ 1 ४