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तक्षशिला की कुछ प्राचीन इमारतें

खोदने से, जौलियाँ में, बुद्ध और बोधिसत्वों की बहुत सी मूर्तियाँ मिली हैं। कई मूर्तियाँ अखण्डित हैं और बड़ी विशाल हैं। स्तूपों के चारों ओर, कई कतारों में, मिट्टी और चूने के पलस्तर की और भी सैकड़ों मूर्तियाँ पाई गई हैं। वे बुद्ध, बोधिसत्वों, भिक्षुओ, उपासिकाओं, देवों और यक्षों आदि की हैं। इन सबकी वेशभूषा, आभूषण आदि देखकर उस समय के वस्त्राच्छादन और सामाजिक व्यवस्था का सच्चा हाल मालूम हो सकता है। पुरुषों के उष्णीष और अङ्ग-वस्त्र, स्त्रियो के सलूके और कर्ण-कुण्डल, तथा देवों और यक्षों के कुतूहल-जनक आकार-प्रकार और भावभङ्गियाँ बड़ी योग्यता से मूतियों में दिखाई गई हैं। उस समय के भारतवासियो ने जिन हूणों को म्लेक्ष संज्ञा दे रक्खी थी उनकी भी मूर्तियाँ मिली हैं। जिन धार्मिक बौद्धो ने अपने अपने नाम से स्तूप बनवाये थे उनके खुदाये हुए, खरोष्ठी लिपि में, कई अभिलेख भी यहाँ मिले हैं। वे कुछ कुछ इस प्रकार

"बुद्धरच्छितस भिक्षुस दनमुखो"

अर्थात् भिक्षु बुद्धरक्षित का दान किया हुआ।

पुरातत्वज्ञों का अनुमान था कि ३०० ईसवी ही में खरोष्ठी लिपि का रवाज भारत से उठ गया था। पर यह बात इन अभिलेखों से गलत साबित हो गई, क्योंकि ये