हुआ है। वह अँगरेज़ी मेंहै और सचित्र है। नाम
है--Excavations at Taxila-The Stupas
and Manasteries at Jaulian इसका भी प्रकाशन
सर जान मार्शल ही ने किया है। इसका अधिकांश उन्हीं का लिखा हुआ भी है। अल्पांश के लेखक
और कई महाशय है। पुस्तक में छोटे बड़े अनेक चित्र हैं।
जौलियाँ में, जहाँ खुदाई हुई है वहाँ, कोई डेढ़ हज़ार वर्ष पहले बौद्धों के कितने ही स्तूप, विहार और चैत्य आदि थे। ये सब एक उॅची जगह, पहाड़ी पर, थे। खोदने पर इन इमारतों में आग लगकर गिर जाने के चिन्ह पाये गये है। ईसा की पाँचवी सदी में तक्षशिला और उसके आस पास के प्रान्त पर हूणो के धावे हुए थे। उन्होंने उस प्रान्त का विध्वंस-साधन किया था। बहुत सम्भव है, उन्हीने जलाकर इन इमारतों का नाश किया हो।
खोदने से इन खॅडहरों में एक बहुत बड़े स्तूप का खण्डांश निकला है। छोटे छोटे स्तूप तो बहुत से निकले हैं। यहीं, स्तूपों के पास, बौद्ध भिक्षुओं के रहने की जगह भी थी। वह एक विस्तृत विहार था, जिसमे पचास साठ भिक्षुओं के रहने के लिए अलग अलग कमरे थे। वह दो मॅजिला था।