माजापिहित की रानी जयविष्णुवद्धिनी राजासन पर इस कारण बैठी थी कि उसका पुत्र हेमऊरुफ अल्प- चयस्क था। १३५० ईसवी में वह वयस्क हुआ और गद्दी पर बैठा। गजमद ही उसका प्रधान मन्त्री बना रहा। इस राजा के राज्य-काल में गजमद के पराक्रम और चातुर्य के प्रभाव से, माजापिहित राज्य की बड़ी उन्नति हुई। दूर दूर तक के देश--न्यूगिनी तक के--इस राज्य के अन्तभुक्त हो गचे। सुमात्रा, बोर्नियो और सिंहपुर (सिंहापुर ) आदि सभी द्वीपो के अधिकारियों ने माजापिहित के अधीश्वर के सामने सिर झुकाया। चह एक प्रकार से चक्रपती राजा हो गया और अपना नाम हेमऊरुफ बदल कर श्रीराजसनागर रक्खा। इस राजा ने अनेक बलशाली देशों के शासको के साथ मैत्री की भी स्थापना की। उनमें से मरुत्तमा ( मर्तबान ) काम्बोज, चाम्पा, यवन (उत्तरी अनाम) और स्यामदेश की अयोध्या तथा राजपुरी के नरेश मुख्य थे।
श्रीराजसनागर के राज्य-काल में माजापिहित राज्य उन्नति के शिखर पर पहुँच गया। दूर देशो में राज्य- शासन के लिए जो सरदार या गवर्नर उसने रक्खे थे वे समय समय पर माजापिहित में उपस्थित होकर राजा की पाद-वन्दना कर जाते थे।
राजा ने भिल भिन्न महकमों के कार्य्यनिरीक्षण के