हैं। इससे सिद्ध है कि वह पूर्ण पैषणव था।
कृतराजस का पुत्र निकम्मा नरेश हुआ। उसके बाद उसकी बहन त्रिभुवनोतुङ्गादेवी जयविष्णुवर्द्धिनी सिंहासन पर बैठो। उसकी बहन राजदेवी और माता गायत्री भी उसके साथ, राजकार्य में, भाग लेती रहीं। रानी का प्रधानामात्य गजमद बड़ा चतुर और शासन-कुशल था। उसने, १३४३ ईसवी में, वाली और उसके निकटवर्ती द्वीपों और प्रान्तों को जीत कर माजापिहित-राज्य की सीमा खूब विस्तृत कर दी। उसने और भी कई राज्यो पर विजय पाने की प्रतिज्ञा को थी। पर उसका यह काम, शायद जयविष्णुवर्धिनी रानी के अनन्तर राजासन प्राप्त करने- वाले हेमऊरुफ नामक राजा के राज्यकाल में, सफल हुआ।
इसी समय (शक १२६९) का एक शिलालेख मिला है। वह आदित्यवर्मा का है। वह सुमात्रा का राजा था। उससे सिद्ध है कि यह राजा तान्त्रिक-सम्प्रदाय का बौद्ध था। नगरकृतागम के कत्ती प्रपञ्च-पण्डित ने भी अपने ग्रन्थ में लिखा है कि उस समय वहाँ तान्त्रिक क्रियाओं का बड़ा जोर था। सुमात्रा और जावा दोनों ही में तान्त्रि- कों का भाधिक्य होते होते हिन्दू और बौद्ध दोनों धर्म्मों की जड़ में घुन लग गया। फल यह हुआ कि कालान्तर में, इन द्वीपों में, मुलसमानी धर्म्म के प्रचार के लिए मैदान साफ होता गया।