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पुरातत्त्व-प्रसङ्ग


हुआ। उदयन का पुत्र एरलिङ्गः बड़ा प्रतापी हुआ। पन्द्रह ही वर्ष की उम्र में उसे, अपने शत्रुओं के भय से, वाणगिरि नामक जड्गल को भाग जाना पडा। वहाँ उसने बहुत समय बडे कष्ट से काटा। उसने वहाँ प्रतिज्ञा की कि यदि मुझे मेरा पैत्रिक राज्य फिर प्राप्त हुआ तो मैं इस अरण्य में एक आश्रम बनवाऊँगा। उसकी इच्छा, कालान्तर में, पूर्ण हुई। तब उसने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार उस अरण्य में एक भव्य आश्रम का निर्माण कराया। वहीं पर प्राप्त हुए सन् १०३५ ईसवी के एक शिलालेख से ये सब बातें मालूम हुई हैं। यह राजा बड़ा प्रतापी था। अपने सभी शत्रुओं पर इसने विजय- प्राप्ति की। इसके राज्यकाल में साहित्य की बहुत उन्नति हुई। अर्जुन-विवाह और विराटपर्व काव्य तथा रामायण और महाभारत के अनुवाद आदि अनेक महत्व- पूर्ण ग्रन्थ, इसी के समय में, जावा की पुरानी ("कवी') भाषा में निर्म्मित हुए। वृद्ध होने पर एरलिस वानप्रस्थ हो गया। उसने अपना राज्य अपने दोनों बेटों को बराबर बराबर बाँट दिया। यह हिस्सा-बाँट भरत नाम के एक "सिद्ध" मुनि ने किया। एक को केदरी का और दूसरे को जाङ्गल का राज्य मिला। यह घटना १०४२ ईसवी में हुई।

जाङ्गल-राज्य के विषय में तो विशेष कुछ भी ज्ञात- नहीं; परन्तु केदिरी-राज्य ने बड़ी ख्याति पाई। उस राज्य