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पुरातत्व-प्रसङ्ग


अधिक है वह उतना ही अधिक ईश्वरत्व अथवा सर्वज्ञत्व की ओर झुका हुआ समझा जाता है। कोई मनुष्य आज तक सर्वज्ञ हुआ है या नहीं, इसका तो पता नही; परन्तु, हाँ, ज्ञान के न्यूनाधिकत्व के अनुसार किसी में अल्पज्ञता और किसी में बहुज्ञता ज़रूर ही पाई जाती है।

संसार में आज तक असंख्य ज्ञानवान् मनुष्य उत्पन्न हो चुके हैं। वे सब अपनी अपनी ज्ञान-शक्ति के अनुसार ज्ञानमूलक वस्तुओ के रूप में न मालूम कितनी मिलकियत छोड़ गये हैं। उन सबका मिश्रित ज्ञान-भाण्डार इतना है जिसकी थाह नहीं। तथापि, फिर भी, कोई मनुष्य यह कहने का साहस नहीं कर सकता कि जानने योग्य सभी बातें जान ली गई हैं। सच तो यह है कि यह सृष्टि अब तक भी प्रायः अज्ञेय या अज्ञात वस्तुओं से ही अधिकतर भरी पड़ी है। इस जगत् के विषय में प्राचीन ऋषि जैसे कहते थे--

को ददर्श प्रथमं जायमानम्
अथवा,को अद्धा वेद क इह प्रवोचत्

कुत आ जाताः कुत इयं विसृष्टिः

वैसे ही आज कल के भी--इस बीसवीं शताब्दी के भी--ज्ञानी पुरुष कहते हैं। इस विषय में न पुराने ज्ञानियों ही को सफलता हुई और न आजकल