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सुमात्रा, जावा द्वीपों में प्रा०हिं०सभ्यता


का राजा था। उसने दो नहर खुदाये थे। एक का नाम था चन्द्रभागा और दसरे का गोसती। ये दोनो ही नाम उत्तरी भारत की नदियों के नाम की नकल हैं। बहुत सम्भव है कि इसी पूर्णवर्म्मा या इसके परवर्ती राजा के राजत्व-काल में प्रसिद्ध चीनी यात्री फा-हीन सिंहलद्वीप से पश्चिमी जावा में पहुँचा हो। इस यात्री ने लिखा है कि उस समय वहां अनेक ब्राह्मण थे। बौद्ध- धर्म्म का प्रचार शुरू हो गया था, परन्तु तव तक उसके अनुयायी बहुत कम थे। इस यात्री ने, ४१३ ईसवी में, जावा से कैण्टन नामक नगर के लिए जिस जहाज़ पर प्रस्थान किया था उस पर २०० हिन्दू-व्यापारी थे। यह बात उसने स्वयं ही अपने यात्रा-वर्णन में लिखी है।

पुराने अवतरणी और उल्लेखों से मालूम होता है कि माया में पहले-पहल काश्मीर के राजा या राजकुमार गुलवम्मा ने, ४२३ ईसवी में घौद्ध-धर्म्म का प्रचार किया। यह राजकुमार जावा से चीन को एक ऐसे जहाज पर गया था जिसका मालिक नन्दी नाम का एक हिन्द था। इससे सिद्ध है कि उस समय इन टापुओं के हिन्दू जहाज बनाने, जहाज चलाने और जहाजों के द्वारा वाणिज्य करने में निपुण थे।

चीन की प्राचीन पुस्तकों से भी जावा के अस्तित्व और वहाँ हिन्दुओं का राज्य होने के प्रमाण मिलते हैं।