का अवतरण नीचे देते है।
गत ३० वर्षों मे हालैंड के पुरातत्त्वज्ञों ने प्राचीन पुस्तकों, लेखो और परम्परा से सुनी गई गाथाओं की सहायता से जावा आदि टापुओं के इतिहास पर बहुत कुछ प्रकाश डाला है।
रामायण कम से कम ईसा के पहले शतक की
पुस्तक है। उसमें जावा अर्थात् यवद्वीप का नाम भाया
है। मित्र देश के प्राचीन इतिहासवेत्ता टालमी ने, दूसरे
शतक में, उसका उल्लेख किया है। बोर्नियो नाम के
टापू में एक बहुत पुराना शिलालेख मिला है। वह संस्कृत-
भाषा में है और ईसा के चौथे शतक का मालूम होता
है। वह जिस लिपि मे है उसी लिपि के लेख चम्पा
और काम्बोज में भी मिले है। उनकी लिपि और भाषा
दक्षिणी भारत के पल्लव-नरेशों के शिलालेखों से मिलती-
जुलती है। बोर्नियो के शिलालेख में अश्ववना नामक
राजा का उल्लेख है। यह राजा अपने वंश का आदि
पुरुष था। इसके पुत्र मूलवर्म्मा ने बहुसुवर्णक नाम का
यज्ञ किया था। इसके बाद पाँचवें शतक के शिलालेख
मिले हैं; वे पश्चिमी जावा के राजा पूर्णवर्म्मा के है। इनकी
भी लिपि पल्लववंशी नरेशों की ग्रन्थ-नामक लिपि के
सदृश है। वर्तमान बटेविया नगर के पास किसी समय
तरुण-नगर नाम की एक बस्ती थी। पूर्णवमी वहीं