कूपमण्डूकता बड़ी ही अनिष्टकारिणी क्या एक प्रकार
से विनाशकारिणी होती है। मनुष्य यदि अपने ही घर,
ग्राम या नगर में आमरण पड़ा रहे तो उसकी बुद्धि का
विकास नहीं होता, उसके ज्ञान की वृद्धि नहीं होती,
उसकी दृष्टि को दूरगामिनी गति नहीं प्राप्त होती। देश-
विदेश जाने, भिन्न भिन्न जातियों और धर्मों के अनुयायियों से सम्पर्क रखने, दूर देशों में व्यापार करने आदि
से विद्या, बुद्धि, धन और ऐश्वर्य की वृद्धि होती है;
मनुष्य में उदारता आ जाती है; जो आचार-विचार और
रीति-रस्म अपने समुदाय में हानिकारक होते हैं उन्हें
छोड़ देने की प्रवृत्ति हृदय में जागृत हो उठती है। जो
बात एक, दो या दस, बीस मनुष्यों के लिए हितावह
होती है वही एक देश के लिए भी हितावह होती है।
इंगलैंड एक छोटा-सा टापू है। उसका विस्तार या रकबा
हमारे देश के सूबे अवध से भी शायद कम ही होगा।
पर उस छोटे से टापू के प्रगतिशील निवासियों ने हजारों
कोस दूर आस्ट्रेलिया और कनाडा तक में अपना प्रभुत्व
जमा लिया है। दूर की बात जाने दीजिए, अपने देश
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