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कम्बोडिया में प्राचीन हिन्दू-राज्य


की पुस्तकें रखवा दी और उनके यथानियम पारायण का प्रबन्ध कर दिया। सातवें शतक में ईशान-वर्मा नाम का एक राजा इतना शिवोपासक हुआ कि उसने अपनी राजधानी का नाम बदल कर ईशानपुर कर दिया।

काम्बोज में जितने प्राचीन शिलालेख मिले हैं सब संस्कृत में हैं। उनकी भाषा व्याकरण की दृष्टि से बहुत ही शुद्ध है। उसमें लालित्य और रसालत्व भी है। इन लेखों की प्रणाली बिलकुल वैसी ही है जैसी कि भारत में प्राप्त हुए उस समय के शिलालेखों की है। इनमें सर्वत्र शक-संवत् का प्रयोग है और वह भी उसी ढँग से किया गया है जिस ढँग से कि भारतीय शिलालेखो में पाया जाता है। जो चीज़ जिसे दी गई उसे छीननेवालों को महारौरव नरक में ढकेले जाने की विभीषिका दिखाई गई है। यह बिभीषिका भी भारतीय शिलालेखो ही की नकल है।

प्राचीन काम्बोज के प्रान्तों और नगरों के नाम भी वैसे ही थे जैसे कि इस देश के हैं। यथा-पाण्डुरङ्ग, विजय, अमरावती आदि।

काम्बोज में प्राप्त शिलालेखों से विदित होता है कि वहाँ किसी समय क्षत्रिय-नरेशों की राजकुमारियाँ ब्राह्मण को भी ब्याही जाती थीं। वेद-वेदाङ्ग में पारङ्गत अगस्त्य नाम का एक ब्राह्मण ईसा की सातवीं शताब्दी के अन्त में