इसी से उसकी दैनंदिन वृद्धि होती गई। फल यह हुआ
कि हिन्दू-धर्म के अनुयायियों की संख्या कम होती गई
और बौद्ध धर्म के अनुयायियों की बढ़ती गई। कम्बोडिया (काम्बोज) में जो शिलालेख मिले हैं उनसे
सूचित होता है कि तेरहवीं सदी तक बौद्ध और हिन्दू
दोनों ही वहाँ साथ ही साथ रहते थे। बौद्ध तो महायान-सम्प्रदाय के माननेवाले थे और हिन्दू प्रायः शैव
थे। उस समय तक दोनों धर्मों के अनुयायी संस्कृत
भाषा का आदर करते थे। उनके शिलालेखों में यह भाषा
बहुत ही विशुद्ध रूप में पाई जाती है।
आर्यों ने अपने उपनिवेश चम्पा और काम्बोज ही में
नहीं स्थापित किये। वे वहाँ से आगे बढ़ते हुए टापुओं
तक में जा बसे। जात्रा में कुछ ऐसे शिलालेख मिले हैं
जो ४०० ईसवी के अनुमान किये गये हैं। वे सभी
संस्कृत में हैं। उनमें नारूमनगर के राजा पूर्णवर्म्मा का
उल्लेख है। बोर्नियो नाम के टापू में भी संस्कृत-भाषा
में खुदे हुए शिलालेख मिले हैं। उनमें भी जिन राजों के
नाम आये हैं सभी के अन्त में "वर्म्मा" शब्द है। सुमात्रा
टापू में तो अनेक शिलालेख पाये गये हैं। वे भी संस्कृत
ही में हैं। उनमें भी वर्म्मन्त-नामधारी नरेशों के उल्लेख
हैं। इन लेखो का प्रकाशन और सम्पादन फेरांड नाम:
को एक विद्वान ने किया है। प्राचीन काल में सुमात्रा-द्वीप