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पुरातत्त्व-प्रसङ्ग


सूचिन होता है कि उस समय के हज़ार पाँच सौ वर्ष पहले ही से भारतवासी वहाँ जाने लगे होंगे। बिना इतना काल व्यतीत हुए विदेशी भारतवासियों की स्थिति वहाँ बद्धमल न हई होगा। संस्कृत भाषा का प्रचार और शिलालखों पर ऐतिहासिक घटनाओं का उल्लेख अन्य देश गसो अल्पकालस्थायी यात्रियों के द्वारा सम्भव नहीं। अतएव सन ईसवी के कम से कम सात आठ सौ वर्ष पहले ही से भारतवासी यहाँ बसने लगे होंगे।

बौद्ध-धर्म्म की उत्पत्ति सन् ईसवी के कोई तीन सौ पर्ष पहले हुई। अशोक के समय मे उसने बड़ी उन्नति की। भारत के अधिकांश भागों में उसकी तूती बोलने लगी। बौद्ध श्रमण विदेशों में भी जाकर अपने धर्म्म का प्रचार करने लगे। इसमें सन्देह नहीं कि वे लोग पाचीन चम्पा ( अनाम) भोर कम्बोडिया; (काम्बोज) वे भी पहुँचे और वहाँ भी अपने धर्म्म का प्रचार किया। धीरे धीरे हिन्दू-धर्म्म के अनुयायियों के साथ ही साथ वहाँ बौद्ध-धर्म के अनुयायियो की भी संख्या बढ़ गई और ये, दोनों सम्प्रदाय वाले वहाँ पाये जाने लगे।

चम्पा और काम्बोज में जब से बौद्ध धर्म्म पहुँचा, बराबर उन्नति करता गया। वह वर्द्धिष्णु धर्म्म था; भारतवासियों की तत्कालीन, प्रकृति के वह अनुकूल था।