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सक्षना चाहिए। सामयिक पुस्तकों की जिला में विखरे.
पड़ेहने से इन लेखों की प्राप्ति सुलभ न थी। इसील
इन्है, इस रूप में, एकत्र प्रकाशित करना पड़ा। जो अपनी
वर्तमन दुःस्थिति में भी अपनी पूर्वकथा नहीं सुनना चाहते
वे चाहे तो इस संग्रह के केवल अन्तिम तीन लेखों से
अपना तनोरञ्जन ही कर लेने की उदारता दिखावें।
भिन्नात्मा समझे जाने के कारण कुछ अन्य लेखकों के लेख भी इसमें शामिल कर लिये गये हैं।
दौलतपुर (रायवरेली)
महावीरप्रसाद द्विवेदी
२ जनवरी १९२९