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पुरातत्त्व-प्रसङ्ग


उल्लेख है जो अन्य कितने ही व्यापारियों के साथ कम्प ( भागलपुर ) से सुवर्ण-भूमि को व्यापार करने जाता था। परन्तु दुर्भाग्य से उसका जहाज बीच समुद्र में डूब गया। किसी किसी विद्वान् की राय मे सुवर्ण-भूमि से मतलब ब्रह्मदेश से और किसी किसी की राय में सुमात्रा नाम के टापू से है। शङ्ख-जातक में लिखा है कि काशी में एक बारण बड़ा दानी था। वह नित्य छः लाख रुपये का दान करता था। ऐसा न हो कि कही दान करते करते उसका धन निःशेष हो जाय, इसलिए उसने, धन की खोज में, सुवर्णभूमि जाने का सङ्कल्प किया। चलते चलते जब उसका जहाज बीच समुद्र में पहुँचा तब उसके पेंदे में कहीं छेद हो गया। परन्तु एक अन्य जहाज के आजाने से उसकी रक्षा हो गई। उस जहाज़वालों ने उसे अपने जहाज पर जगह दे दी। ससोंदी-जातक मे भी एक व्यापारी के सुवर्णभूमि जाने का उल्लेख है।

बौद्ध-ग्रन्थों के सब प्रमाणो से भी सिद्ध है कि प्राचीन काल में हिन्दू-लोग ब्रह्मदेश, चीन, लङ्का, मिस्र, फारिस, अरब और बाबुल आदि देशों तथा अन्य कितने ही दूरवती टापुओं में व्यापार आदि के लिए, समुद्र की राह, जहाजों पर बराबर जाते-आते थे। इससे स्पष्ट है कि वे लोग समुद्र-यात्रा करना बुरा या धर्मविहीन काम