एक बौद्ध-ग्रन्थ में लिखा है कि सपारक-निवासी पन्ना नाम का एक व्यापारी, अपने छोटे भाई चूल-पन्ना के साझे में. उत्तर-कोशल से व्यापार किया करता था। एक दिन श्रावस्ती में उसने बुद्ध को उपदेश करते हुए सुना। इसका प्रभाव उस पर इतना पड़ा कि वह तुरन्त बौद्ध हो गया। उसने लङ्का में रक्त-चन्दन की लकड़ी का एक विहार बनाने का इरादा किया। इसलिए उसने चन्दन की लकड़ो किसी दूरवती देश से, समुद्र की राह, मँगवाई। जिस जहाज पर यह लकडी लादी गई थी वह इतना बड़ा था कि हजारों मन लकड़ी के सिवा उसमें तीन सौ व्यापारी भी मजे से रह सकते थे। एक अन्य स्थान में लिखा है कि दो ब्रह्मदेशवासी व्यापारी, एक बड़े भारी जहाज पर बङ्ग-सागर को पार करके, कलिङ्ग-देश के अजित्ता बन्दर मे उतरे थे। वहाँ से वे मगध-देश को गये थे।
एक तिब्बतीय बौद्ध-ग्रन्थ में लिखा है कि श्रावस्ती
के कुछ व्यापारी लङ्का जाते हुए, बङ्ग-सागर मे तूफान आ
जाने के कारण, रास्ता भूल गये थे; परन्तु तूफान शान्त
हो जाने के बाद अपने गन्तव्य स्थान को पहुँच गये थे।
एक चीनी ग्रन्थ मे एक सिंहकुमारी का जिक्र है जिसका
जहाज पश्चिमी वायु के झोंके खाकर फारिस की खाड़ी
में जा पड़ा था। वहाँ वह उतर पड़ी और समुद्र के