दैवी दुर्घटना के कारण होगी उसके लिए वे उत्तरदाता
न होगे। याज्ञवल्क्य-स्मृति के व्यवहाराध्याय में लिखा
है--"ये समुद्रगा वृद्धया धनं गृहीत्वा अधिलाभार्थ
प्राणधनविनाशशङ्कास्थानं समुद्रं गच्छन्ति ते विंश शतं
मासि मासि दध:।" इससे साफ़ जाहिर है कि हिन्दू-
लोग धन-प्राप्ति की इच्छा से समुद्र के बड़े बड़े भयङ्कर
स्थानो तक की यात्रा करते थे।
पुराणों में भी उन व्यापारियों का ज़िक्र है जो समुद्र की राह व्यापार करते थे। वाराहपुराण में गोकर्ण-नामक एक निःसन्तान व्यापारी का उल्लेख है। वह समुद्र-पार व्यापार करने गया था, परन्तु तूफान आजाने से वह समुद्र मे डूब गया। इसी पुराण में एक जगह लिखा है कि एक व्यापारी ने कुछ रत्नपरीक्षको के साथ मोतियों की तलाश में समुद्र-यात्रा की थी।
$ पुनस्तत्रैव गमने वणिग्भावे मतिर्गता।
समुद्र-याने रत्नानि महास्थौल्यानि साधुभिः॥
रत्नपरीक्षकैः सार्धमानयिष्ये बहूनि च।
एवं निश्चित्य मनसा महासार्थपुरःसरः॥
समुद्रयायिभिर्लोकैः सविदं सूच्य निर्गतः।
शुकेन सह सम्प्राप्तो महान्तं लवणार्णवम्॥
पोतारूढास्ततः सर्वे पोतवाहैरुपोषिताः।