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पुरातत्व-प्रसङ्ग


अथवा उन्हें पाण्डवों ने जीत लिया था। सभा-पर्व में लिखा है--

सागरद्वीपवासॉश्च नृपतीन् म्लेच्छयोनिजान्।

निपादान् पुरुषाढॉश्च कर्णप्राधरणानपि॥

द्वीपं नाम्नाह्वयञ्चैव वशे कृत्वा महामतिः

इससे सिद्ध है कि महामति सहदेव ने सागरद्वीप- वासी म्लेच्छनरेशों और निषाद तथा कर्ण-जाति के लोगों को परास्त और वशीभूत किया था। उनमें ताम्रद्वीप का राजा भी शामिल था।

रामायण और महाभारत ही में नहीं, सूत्रग्रन्थों में भी इस बात का प्रमाण पाया जाता है कि प्राचीन भारतवासी समुद्र की राह अन्य देशो से व्यापार करते थे। इस विषय में प्रसिद्ध जर्मन-विद्वान् अध्यापक बूलर ने लिखा है--

“दो अत्यन्त प्राचीन धर्मसूत्रों में भी समुद्र-यात्रा का उल्लेख पाया जाता है। बौधायन-धर्मसूत्रो मे एक जगह (२-२-२ में) लिखा है कि ब्राहाणों को समुद्रयात्रा न करनी चाहिए। परन्तु दूसरी जगह (१-२-४ में) लिखा है कि आर्य्य देश के निवासी धड़ाधड़ समुद्र-यात्रा करते हैं। अन्यत्र लिखा है कि वे ऊन और पशुओं का व्यापार भी करते हैं। जहाज़ों के मालिकों को जो महसुल राजा को देना पड़ता था उसका उल्लेख भी बौधा-