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प्राचीन हिन्दुओं की समुद्र-यात्रा

कलकत्ते से एक सामयिक पत्रिका अँगरेज़ी भाषा में निकलती रही है। मालूम नहीं, वह अब तक अस्तित्व में है या नहीं। नाम उसका था--डान सोसायटीज़ मैगजीन (Down Socities-Magazine)। उसकी कुछ संख्याओ में हिन्दुओ की समुद्र-यात्रा के सम्बन्ध में कई महत्त्वपूर्ण और प्रमाण-पुष्ट लेख निकले थे। उन्ही का आशय नीचे दिया जाता है।

कुछ लोगों का ख़याल है कि हिन्दू सनातन ही से पूर-मण्डूकता के प्रेमी हैं। समुद्र-यात्रा के वे सदा ही से विरोधी रहे हैं। प्राचीन काल में वे विदेशी या विदेशियो से कुछ भी नग्यन्ध न रखते थे। अन्य देशों को आना-जाना या समुद्र-यात्रा करना वे पाप समझते थे। जहाज आदि जल-यान भी उनके पास न थे; न वे उन्हें बनाना ही जानते थे। उन्हें यह भी न मालूम था की अपने देश के सिवा दुनिया में कोई और भी देश है। मतलब यह कि वे निर गृप-मण्डूक यने अपने ही घर में मस्त रहते थे। पर वास्तव में यह बात नहीं। लोगों के ये ख्याल बिलकुल ही गलत हैं। प्राचीन काल के हिन्दू