तीन रिपोर्टें प्रकाशित की।
१८८५ ईसवी में जनरल कनिहाम ने पेंशन ले ली। तब तक वे पुरातत्व-सम्बन्धिनी २४ रिपोर्ट निकाल चुके थे। ये रिपोर्ट बड़ी बड़ी जिल्दो मे हैं। इनको पुरातत्व- विषयक ज्ञान की बहुत बड़ी निधि समझना चाहिए। ये कनिहाम साहब के अलौकिक परिश्रम, उद्योग और योग्यता का अपूर्व साक्ष्य दे रही है। बिना इनका साधन्त पाठ किये कोई भी साक्षर मनुष्य भारतीय पुरातत्त्व के इतिहास का पूरा पूरा ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता।
कनिहाम साहब के बाद उनकी जगह डाक्टर बर्जेस को मिली। तब खोज के साथ ही संरक्षण का भी काम इसी महकमे को दिया गया। उसका विस्तार बढ़ाया गया, सारा भारत पाँच भागो या सरकिलों में बाँटा गया। प्रत्येक भाग के लिए एक एक सर्वेयर की योजना की गई। प्राचीन लेख पढ़ने के लिए एक विलायती पण्डित रक्खा गया और उसकी सहायता के लिए देशी विद्वानो की भी योजना हुई।
१८८९ ईसवी में बर्जेस साहब अपने घर गये।
तब इस महकमे की कला उतरने लगी। इसके ख़र्च की
जाँच पड़ताल करने के लिए एक कमिटी बनाई गई। उसने
खर्च में बहुत कुछ कतर-व्योत करने की सिफारिश की।
वह स्वीकार हुई। कुछ सर्वेयर निकाले गये। डाइरेक्टर