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पुरातत्त्व-प्रसङ्ग


देश का मङ्गल अवलम्वित है।

इस कराल कलिकाल में इसाई-धर्म्म-प्रचारकों को यदि सर्वव्यापक कहें तो भी कुछ अत्युक्ति नहीं। ये सारे संसार को पुण्यात्मा बनाने और उसे स्वर्ग के सिंहासन पर बिठाने के लिए दिन-रात फिक्रमन्द रहते है। अपने देश, अपने प्रान्त, अपने नगर, यहाँ तक कि अपने घर तक में भी प्रभु ईसामसीह की सुन्दर शिक्षाओं पर चाहे मनों हरताल क्यों न पोता जाता हो, उसकी इन्हें उतनी फिक्र नहीं। उन लोगो को धर्मभीरु और धर्म्माचरणरत बनाने की ओर इनका ध्यान उतना नहीं जाता जितना कि एशिया और अफ़रीका के विधर्म्मियो, अतएव पाप-परायणों को धर्म्मनिष्ठ बनाने की ओर जाता है। अतएव इस तरफ़ ऐसा कोई भी देश या टापू नही जहाँ परोपकारव्रत के व्रती पादरियों के कदम शरीफ न पहुँचे हों। इसी सद्बुद्धि की प्रेरणा से, १८२० ईसवी में, मैडेगास्कर में भी कुछ पादरी पहुँचे। वहाँ के तत्कालीन राजा ने उनका अच्छा आदर-सत्कार किया। यथा समय उस राजा की मृत्यु हुई। उसके बाद उसकी रानी ने राज्य-भार ग्रहण किया। जिस दिन वह राजासन पर बैठी उसी दिन लोहे के आभरणों से आवृत दो मूर्तियाँ उसके सामने लाई गई। उन पर हाथ रखकर रानी ने कहा--"हम तुम पर विश्वास करती हैं। हमारी रक्षा तुम्हारे ही हाथ है।"