के बालों को पहले २४ भागो में बाँटती
है। फिर प्रत्येक भाग को अलग अलग सँवार
कर उसका जूड़ा बनाती है। इसी तरह २४
जूड़ों का एक समूह बनाकर और उसे मजबूती से गूँथ
कर लटका लेती हैं। कहीं कहीं जूड़ा न बनाने की भी
चाल है। वहाँ समस्त केशपाश की २४ वेणियाँ बना
कर वहीं सिर के इधर-उधर लटका ली जाती हैं।
सकालवा लोगो का प्रधान खाध तो चावल है; पर वे लोग मांसभोजी भी हैं। शाक-सब्जी और चावल के सिवा वे गाय, बैल, सुअर, बकरी आदि का मांस भी खाते हैं। वे दिन में दो दके भोजन करते हैं-- दोपहर को और फिर कुछ रात बीतने पर। इन लोगों का मेदा चावल अच्छी तरह नहीं हजम कर सकता। यदि किसी ने जरा भी अधिक खा लिया तो पेट चलने लगता है। भोजन करते समय पुत्र के सामने माँ बैठी ही नहीं रहती, वह उसके पेंट पर ढीला करके फीते की तरह कपड़े की, एक चिट बाँध देती है। खाते खाते बच्चे के पेट से ज्यो ही फीता लग जाता है त्यों ही माँ बच्चे के सामने से खाद्य पदार्थ खीच लेती है। मतलब यह कि बच्चा इतना न खा जाय कि हज़म न कर सके।
सकालवा लोग नास के बड़े शौकीन हैं। वे दिन-रात, नास सूँघा नहीं, किन्तु फाँका करते हैं। रूप