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पुरातत्व-प्रसङ्ग


नहीं। न तो वे किसी प्रकार की पूजा-अर्चा या प्रार्थना ही करते हैं और न बलिदान ही देते हैं। पर ये किसी को ईश्वर जरूर मानते हैं। इनका ख़याल है कि दण्ड देने के लिए वही आंधी चलाता है। स्मुद्र, वन, नदी आदि को भी ये एक प्रकार के देवता समझते हैं। उन सबकी अधिष्ठात्री आत्माओ में ये देवत्व की कल्पना करते हैं; परन्तु उनकी पूजा-अर्चा ये नहीं करते। पानी में अपनी परछाई देखकर ये समझते हैं कि इन्हें अपनी आत्मा दिखाई दे रही है। इनका विश्वास है कि मरने के बाद इनकी आत्मायें किसी अज्ञात जगह में वास करती हैं। परन्तु इनकी भावी दण्ड या फल-प्राप्ति का विचार कभी सताता या आनन्दित नही करता। इन लोगों में जितने किस्से या कहानियाँ प्रचलित हैं वे सब बहुत पुरानी जान पड़ती हैं। उनसे सूचित होता है कि इनका देश किसी समय समुन्द्र-गर्भ में निमग्न था। सम्भव है, जैसा कि एक जगह ऊपर लिखा जा चुका है, किसी अज्ञात काल में इनका देश एशिया-महाद्वीप से जुड़ा रहा हो और पीछे से समुद्र में डूब गया हो। इनकी कल्पना है कि आग पहले-पहल आकाश से प्राप्त हुई थी। कह नहीं सकते, पर शायद इनकी कहानियाँ किसी ज्वालामुखी पर्वत के स्फोट या बिजली गिरने से सम्बन्ध रखती हों।

अन्दमनियों की जाति एक ऐसी जाति मालम होती