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काले पानी के आदिम असभ्य


को भी आराम से रहना बहुत पसन्द है। परन्तु सबसे अधिक सुख और आनन्द उसे तब मिलता है जब वह डोंगी पर सवार होकर समुद्र में मछली मारने जाता है अथवा जब वह अपने सजातियों के साथ जातीय नाच में शामिल होता है।

अन्दमनी लोग सभ्य मनुष्यों की बस्ती से दूर भागते हैं। वे वहाँ अपने मन से कभी नहीं जाते। बहुत मनाने फुसलाने से कभी कभी कोई वहाँ चला जाता है। उसे एक लँगोटी पहना कर बस्ती में लाना पड़ता है। अपने जङ्गली निवास स्थलों में ये लोग स्वच्छन्दतापूर्वक न बिचरा करते हैं। स्त्रियाँ अलबत्ते पत्तों का आवरण धारण करती हैं। कपड़े से उन्हें काम नहीं। बेचारी सीना भी नहीं जानतीं। एक बड़े से पत्ते ही से वे अपनी लज्जा का निवारण कर लेती हैं। इनकी कमर में छाल की एक रस्सी सी बंधी रहती है। उसी के सहारे ये पत्ते को बाँध या लटका लेती हैं। इस तरह के पत्ते इन्हें सहज ही मिल जाते हैं। न उनके दाम देने पड़ते और न उन्हें सिलाने के लिए किसी दर्जी ही का मुँह ताकना पड़ता है। अन्दमनी स्त्रियाँ छाल का एक और भी आवरण रखती हैं। उसे वे कमर के दाहने बाँयें, अपने कमरबन्द में बाँधकर लटकाये रहती हैं। इसे वे सिर्फ शोभा के लिए, केवल उत्सवों या त्योहारों के अवसर पर, धारण करती हैं।