को जबरदस्ती पकड़ ले जाते और उन्हें गुलाम बनाते या
बेच डालते थे। इसी से यहाँ वाले अपरिचित जनों के
दुश्मन हो गये हैं। परन्तु ये अनुमान कुछ ठीक नही
जंचते क्योंकि अन्दमनी मनुष्य अपनी जाति के भी
अपरिचित आदमियो के साथ बुरा बर्ताव करते हैं।
अपरिचितों से वैर-भाव रखना इनका स्वभाव ही सा हो
गया है।
अन्दमन-द्वीप के मूल निवासी भिन्न भिन्न समुदायो में बंटे हुए हैं। एक समुदाय के लोग दूसरे समुदाय- वालो से बहुत ही कम मिलते-जुलते हैं। यदि कही, देवयाग से, इन लोगों मे मुठभेड़ हो जाती है तो ये बड़े बिना नहीं रहते। ये लोग एक ही भाषा से उत्पन्न हुई कई तरह की बोलियां बोलते हैं। एक समुदाय के मनुष्य दूसरे समुदाय के मनुष्यों की बोली अच्छी तरह वहीं समझ सकते। इसका कारण परस्पर मिल-जुल कर न रहने के सिवा और कुछ नहीं जान पडता।
सभ्य संसार के मनुष्य अन्दमनियो को बहुत समय
से जानते हैं। परन्तु इनके विषय में, कुछ समय पहले
तक, हम लोगों का ज्ञान भ्रमात्मक था। सन १२९०
ईसवी में प्रसिद्ध यात्री मार्को पोलो इन द्वीपों के पास
से गुज़रा था। उसने लिखा है कि इन लोगो का सिर
मस्तिफ़ कुत्ते के समान बड़ा और पैर बहुत लम्बे होते