एशियाटिक सोसायटी ने एशियाटिक रीसर्चेज नाम की एक पुस्तक-माला निकालना आरम्भ किया। १७८८ से १७९७ ईसवी तक इस माला के ५ भाग निकले। जो भिन्न भिन्न विद्वान भिन्न भिन्न पुरातत्व विषयों के अध्ययन में लगे हुए थे उनके लेख इसी माला में निक- लते रहे। इसकी बड़ी कदर हुई। इसके कई संस्करण इंगलैंड में भी निकले। एक फरासीसी विद्वान् ने इनका अनुवाद अपनी भाषा में प्रकाशित किया। इस प्रकार भारतीय पुरातत्त्व के संबंध में योरसवालों ने भी योग- दान आरम्भ कर दिया। नये नये पुरातत्त्वज्ञ पैदा होगये और यह काम झपाटे से होने लगा।
सर विलियम जोन्स की मृत्यु के बाद १७९४ में,
उनका स्थान हेनरी कोलबुक ने ग्रहण किया। वे भी
अच्छे संस्कृतज्ञ थे। उन्होंने इस देश के सम्बन्ध में
अनेक ग्रन्थ और लेख लिखे। "हिन्दुओं के धार्मिक रीति-
रवाज", "भारतीय-वर्ण-व्यवस्था की उत्पत्ति",
"संस्कत और प्राकृत-भाषा", "संस्कृत और प्राकृत-छन्दः-
शास्त्र" आदि बड़े ही महत्त्व-पूर्ण लेख उन्होंने प्रकाशित
किये। वेद, सांख्य, मीमांसा, न्याय, वैशेषिक, वेदान्त,
कृषि, वाणिज्य, समाज-व्यवस्था, कानून, धर्म, गणित,
ज्योतिष इत्यादि अनेक विषयों पर भी बड़े ही गवेषणा-
पूर्ण लेख उन्होंने लिखे। इन लेखों में निर्दिष्ट बातों और