लिए ये लोग विषाक्त बाण और छोटे के लिए बाँस के
त्रिशुलमुखी बाण और दाँव काम में लाते हैं। कुत्तों की
सहायता से भी ये लोग शिकार खेलते हैं।
खेती-बारी के काम में मिशमी लोग निपुण नहीं। जोतने बोने के लिए जितनी ज़मीन दरकार होती है उतनी पर उगा हुआ जङ्गल काट डाला जाता है। सूखने पर कटे हुए पेड़ों और झाड़ियों में आग लगा दी जाती है। बस खेती के लिए खेत तैयार हो जाता है। उसी में जो कुछ इन्हें बोना होता है बो देते है।
खाने-पीने अर्थात् भक्ष्यामक्ष का जरा भी विचार इन लोगों में नहीं। मेड़क, चूहे, साँप, छिपकली इत्यादि सभी जीव-जन्तु इनकी खूराक है।
बनिज-व्यापार का नामो-निशान तक मिशमियों के
देश में नहीं। इन लोगो की आवश्यकताये बहुत ही कम
हैं। अपने ही देश की उपज से इनका काम निकल जाता
है। हाँ, तिब्बती आदमियों के साथ कभी कभी कुछ यों-
ही सा लेन-देन ये लोग कर लेते हैं। सोने को यहाँ
कोई नहीं जानता। पर रुपये को सब लोग पहचानते है।
[नवम्बर १९२६
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