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मिशमी जाति


समझी जाती है। यहाँ गुलामी की प्रथा भी जारी है।

जो दास या गुलाम जी लगाकर मालिक का काम करता है और खेती-बारी में उसकी ग्रथेष्ट मदद करता है उसके साथ मिशमी लोग बहुत अच्छा व्यवहार करते हैं। उसे ये बड़े आराम से रखते हैं।

मिशमी लोगों के समुदाय में धर्म और मत-मतां- तरों का नाम तक नहीं। ये इन बातों का ज्ञान बिलकुल हो नहीं रखते। परन्तु संसार के अन्यान्य अनार्यों की तरह ये लोग भी भूत-प्रोतों में विश्वास रखते हैं। भूत- प्रोतों को ये सदा ही मिन्नत-आरजू करते और उन्हें मनाते-पथाते रहते हैं। परन्तु इनके मनाने के कोई कोई ढङ्ग बड़े ही अजीब क्या भोषण तक होते हैं। यथा--मृत- पति की आत्मा को शान्ति देने या उसे सुखी करने के लिए कभी कभी ये लोग उसकी विधवा पत्नी को जामीन में जिन्दा ही गाड़ देते हैं। पर ऐसे भीषण काण्ड बहुत ही विरल होते हैं। यह कर क्रिया तभी होती है जब मिशमी लोग देखते हैं कि विधवा स्त्री बूड़ी हो गई है अथवा वह बॉश है। अतएव वह समाज के लिए भार-भूत हो रही है। ऐसे बोझ को ज़मीन में गाड़कर अपने आपको हलका कर लेना बुरा नहीं समझा जाता।

मिशमी लोगों के देश में काहिलों और बूढ़ों के रहने की गुंजायश नहीं 1 खूब काम करनेवाले चुस्त और