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मिशमी जाति


पीते हैं। जिसे देखिए वही थैली में तम्बाकू और हाथ में बाँस की एक नली लिये रहता है। छः छः सात सात वर्ष की लड़कियाँ तक, बड़ों बूढों के सामने, घड़ी घड़ी बाद, दम लगाया करती हैं। तम्बाकू पीने की नलियाँ धातु की भी बनती हैं। परन्तु आमतौर पर लकड़ी ही की बनी हुई नलियाँ काम में लाई जाती हैं। वे किसी वृक्ष की जड़ की बनाई जाती हैं।

मिशमी लोग शान्तिप्रिय होते हैं। लड़ना-झगड़ना इन्हें पसन्द नहीं। अपने को ये बहुत रूपवान समझते हैं। अच्छे कपड़े पहनने के शौकीन होते हैं। रुई के सूत से ये लोग अपने कपड़े अपने ही देश में तैयार कर लेते हैं। पर ऊनी कपड़ों के लिए इन्हें तिब्बत का मुख देखना पड़ता है। ये वहीं से आते हैं। कारण यह है कि इनके देश में भेड़-बकरियाँ नहीं होती। मनकों की मालायें ये खूब पहनते हैं। इनकी वेशभूषा और सज-धज देखने लायक होती है। दाहने हाथ में भाला, बाँयें कंधे पर दाँव और यदि सौभाग्य से मिल गई तो दाहने कंधे सें तलवार लटका करती है। दाहने कंधे से वह थैली भी लटकती रहती है जिसमें ये लोग पीने की तम्बाकू और खाने की एक आध चीज़ सदा रक्खे रहते हैं। इनकी टोपियाँ वेत की बनती हैं और देखने में बड़ी सुन्दरं मालूम होती हैं। उनसे धूप का भी बचाव होता है