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मिशमी जाति


अगम्य जगहों में जाने के लिए ये लोग रास्ता नहीं बनाते। इस विषय में ये बिलकुल ही उदासीन हैं। किसी तरह झाड़ियों और कटीले पेड़ों के बीच से ये निकल जायँगे। पर काट-छाँटन करेंगे। मगर ये पुल बनाना खूब जानते हैं। इस देश में एक ऐसा पुल है जो कोई सवा सौ गज़ लम्बा है। न उसमें कहीं कोल-काँटा ही लगा है और न कही तार आदि ही है। सारा काम बेत और बाँस ही से लिया गया है। सभ्यता के सूचक कील-काँटों का यहाँ पता ही नहीं। उनका प्रवेश ही इस देश में नहीं हुआ। इन लोगो के बनाये हुए पुलों के ऊपर से जानवर नहीं जा सकते। परन्तु बोझ, चाहे कितना ही वजनो हो, आराम से और बिला किसी ख़तरे के, लोग उस पर से ले जाते हैं।

मिशमियों के देश में बाँस की बड़ी अधिकता है। वेत भो खूब होता है। साग-पात ओर औषधिगाँ भी वहाँ बहुत पैदा होतो हैं। टीटा नाम की एक ओषधि वहाँ होती है। वह बड़े काम आती है। उसका चालान आसाम के सदिया-प्रान्त को बहुत होता है। खनिज पदार्थों का वहाँ अभी तक कहीं पता नहीं।

मिशमी लोग कूद में ठिंगने होते हैं। इनकी उँचाई पाँच फुट चार इंच से शायद ही कभी अधिक होती होगी। पर वे होते बड़े मजबूत हैं। बिला थकावट के वे