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पुरातत्त्व-प्रसङ्ग


गङ्गा बहाने के भी पक्ष में हैं। उनकी राय है कि एशिया-माइनर या भूमध्य-सागर के तटवती प्रान्तों में सभ्यता का प्रथमावतार नहीं हुआ। वह हुआ द्रविड़ों की बदौलत भारत ही में। भारतीय ही द्रविड़ पश्चिम की ओर बाबुल, सुमेर-प्रान्त, आसीरिया और क्रीट तक गये थे और उन्होंने वहाँ सर्वत्र अपनी सभ्यता फैलाई थी। यदि यही बात ठीक निकले तो भी सभ्यता का साफा आर्य्यों के सिर से उतरा ही समझिए। द्रविड़-जाति चाहे भारत से क्रीट गई हो चाहे क्रीट से भारत आई हो, वह साफा आर्य्यों को नसीव नहीं हो सकता। उनका दुर्भाग्य! दुर्भाग्य न होता तो आर्य्यों से भी दो ढाई हजार वर्ष पहले के पुराने सभ्य द्रविड़ कैसे निकल आते। इन्हीं कल के आर्य्यों को तिलक महाराज मेरु-प्रान्त में रहनेवाले और लाखों वर्ष की पुरानी सभ्यता का सुख लूट चुकनेवाले बता गये हैं!

[मार्च १९२५