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पुरातत्त्व-प्रसङ्ग


ने, तत्कालीन गवर्नर जनरल बारन हेस्टिग्ज की सहायता से, कलकत्ते मे, १५ जनवरी १७७४ को, एशियाटिक सोसायटी नाम की एक संस्था की संस्थापना की। इस संस्था ने एशियाखण्ड के इतिहास, साहित्य, स्थापत्य, धर्म्म, समाज और विज्ञान आदि विषयों के सम्बन्ध में खोज करना अपना उद्दश निश्चित किया। बस, इस सभा की स्थापना के साथ ही भारतवर्ष के इतिहास अर्थात् पुरातत्त्व के अन्वेषण का शुभ काम आरम्भ हुआ। परन्तु इस कार्यारम्भ के पहले ही सैकड़ों प्राचीन इमारतें नष्टभ्रष्ट होगई; सैकड़ों शिलालेखों की सिलें और लोढ़े बन गये; सैकड़ों शिलालेख मकानों की दीवारों में चुन दिये गये; सैकड़ों दानपत्रों के ताम्रफलक गलाकर घड़े, लोटे तथा और बर्तन बना डाले गये। प्राचीन ग्रन्थ कितने गले, कितने कीटभक्ष्य बने, कितने पंसारियों की दूकानों में पहुँचे, इसका तो कुछ हिसाब ही नहीं। खैर, भारत के सौभाग्य से इस नई संस्थापित संस्था ने इन पुरानी वस्तुओं की रक्षा का सूत्रपात कर दिया।

सर विलियम जोन्स के अनन्तर चार्ल्स विलकिन्स ने संस्कृत भाषा सीखी। उन्हीं के प्रयत्न से देवनागरी और बंगला-टाइप तैयार हुआ। उन्होंने कुछ पुराने लेख भी ढूँढ निकाले और उन पर विवेचनापूर्ण नोट भी लिखे। भगवद्गीता का अंग्रेजी-अनुवाद भी उन्होंने किया।