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द्रविड़जातीय भारतवासियों की स० की प्रा०


बली मच गई। उन लोगों ने पता लगाया कि जैसी चीज़े मोहन-जोदरी और हरप्पा में मिली हैं वैसी ही सैकड़ों चीजें इराके अरब और बाबुल के पुराने खँडहरों और धुस्सों में बहुत पहले ही मिल चुकी हैं। वैसे ही ठप्पे, वैसे ही जेवर, वैसे ही वर्तन और वैसी ही कवरें। ठप्पों को लिपि भी वहाँ वैसी ही है जैसी कि भारत में आविष्कृत ठप्पों पर है। यहाँ और वहाँ प्राप्त हुई चीज़ों के फोटो भी बरावर बराबर छाप कर मुकाबला किया गया। उससे यह निश्चय सा हो गया कि दोनों देशों में मिली हुई चीजें एक ही सी हैं। उनमें अणु-रेणु का भी अन्तर नहीं।

इस खोज, इस तर्कना, इस विचार-परम्परा से यह निष्कर्ष निकाला गया कि किसी समय जो लोग प्राचीन बाबुल, सुमेर-राज्य और क्रीट तथा साइप्रोस भारि टापुओं में रहते थे वही--उनके वंशज, उनके सजातीय बन्धु वर्ग--भारत के पञ्जाब और सिन्ध प्रान्तों में भी रहते थे।

इसके अनन्तर और अधिक छान-चीन हुई। उससे मालम हुआ कि आज से पाँच छः हज़ार वर्ष पहले श्री के टापू और एशिया माइनर के कुछ प्रान्तों में ऐसे लोग रहते थे जो तरमिलाई, डूमिल और डामिल कहलाते थे। सैकड़ो और हजारों वर्ष तक वहाँ उनका दौर-दौरो