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द्रविड़जातीय भारतवासियों की स० को प्रा० १२३
 


आसोरिया आदि के निवासो तो आज से कोई ५ हजार वर्ष पहले ही बहुत कुछ सभ्य हो गये थे। पर जो लोग पोलैंड और पश्चिमी रूस में, अथवा उन देशों के आसपास रहते थे, वे योही कुछ थोड़े से सभ्य थे। वह उतनी भी सभ्यता उन्होने दूसरों ही की कृपा से पाई थी। हाँ, भाषा उनकी ज़रूर बहुत सुन्दर थी। ये असभ्य या अर्द्धसभ्य मनुष्य और जाति के थे; मिस्र और बाबुल आदि के सुसभ्य और ही जाति के। अब चूंकि यह सिद्ध किया जा रहा है कि पश्चिमी रूस के प्रान्तवर्ती देशों के निवासी ही पीछे से भारत, .फारिस और जर्मनी आदि में जाकर बसे; इसलिए वही पुराने आर्य्यो के पूर्वज थे और हम लोग भारतवासी उन्ही असभ्यों को सन्तति हैं । याद रहे, द्राविड़ लोग किसी और ही जाति के हैं। अतएव आर्यों के मुकाबले में द्रविड़ों के पूर्वजों को असभ्यता के स्पर्श से बरी समझना चाहिए।

अब आप भारत में कदम रखनेवाले भार्यों के आदिम धर्म-विश्वासों और सामाजिक नियमों का मुकाबला उनके वंशजों के परवर्ती पूजा-पाठ और धार्मिक बातों से कीजिए । पहले ये लोग रहते थे रूस, पोलैंड और जर्मनी वगैरह में । वहाँ बर्फ पड़ती है और कड़ाके के जाड़े से लोग साल में सात आठ महीने ठिठुरा करते