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पुरातत्त्व-प्रसङ्ग


पता लगाते गये । इस प्रयत्न से काफी सामग्री प्राप्त हो जाने पर चे इस नतीजे पर पहुंचे कि कोई तीन चार हजार वर्ष पहले पश्चिमी रूस, पोलेड, उत्तरी जर्मनी और मध्ययोरप में एक ऐसी जाति का निवास था जो असभ्य तो थी, पर कुछ कुछ सभ्यता भी उसमें आने लगी थी। वह उन देशों या प्रान्तों के जङ्गली भागों और ऐसी जगहो में रहती थी जहाँ घास खूब होती थी। उस समय जब उनकी यह दशा थी तब मिस्र भौर इराके,अरब के निवासी उनसे बहुत अधिक सश्य हो चुके थे । उन असभ्यों में जो कुछ सभ्यता आ गई थी वह इराके,अरब और मिस्र के उन लोगों की बदौलत उन तक पहुंची थी जो बनिज-व्यापार के लिए उनके देशो या प्रान्तों में आया-जाया करते थे। उन असभ्यों की भाषा बड़ी सुन्दर थी। जब वे लोग धीरे धीरे पूर्व, पश्चिम और दक्षिण की ओर बढ़ कर अन्य देशों पा प्रान्तो मे जा बसे तब, कालान्तर में, उनकी उस भाषा ने भी परिवर्तित रूप धारण कर लिये। भारत में वह संस्कृत हो गई, ग्रीस में ग्रीक हो गई, इटली में लैटिनं हो गई। उसी तरह ट्य टन और केल्ट लोगों के निवास देशो में उसने उनकी भाषाओं का रूप धारण कर लिया।

इन कल्पनाओं का आशय यह है कि मिस्र, बाबुल,