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द्रविड़जातीय भारतवासियों को स० को प्रा॰
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सभ्य न थे । अधिक सभ्य होते तो उस समय के पहले की भी इमारतों के ध्वंश पाये जाते, कुछ सिक्के ही मिल जाते, लोहे और ताँबे वगैरह के कुछ औजार या शस्त्र ही कहीं से निकल आते । सो कुछ नही हुआ। अतएव समझना चाहिए कि भारतीय आर्य्य अब से ढाई तीन हजार वर्ष पूर्व योही साधारणत: सभ्य थे; उतने नहीं जितने कि वे समझे जाते हैं।

विद्याव्यास और शिक्षाप्रचार में ज्यों ज्यों उन्नति होती गई त्यों त्यों लोगों की रुचि भी पुरातत्व की खोज की ओर अधिकाधिक झुकती गई । इधर भारत में भी नये नये तत्वों का आविष्कार होने लगा, उधर योरप में भी। योरप के प्रनतत्त्व-विशारदों ने मिस्र, बाबुल, आसीरिया आदि में खुदाई और खोज का काम झपाटे से जो चलाया तो उनकी आँखें खुल गई। उन्हें उन देशों में चार चार पाँच पाँच हजार वर्षों की पुरानी इमारतों के चिन्ह और उतनी ही पुरानी चीजें मिलने लगी। इस पर उन्होंने आश्चर्यचकित होकर कहा-अरे, ये देश तो भारत से भी बहुत पुराने हैं। ये तो उससे भी हजारों वर्ष पहले ही सभ्य हो चुके थे।

इस तरह के विश्वास या कल्पनायें धीरे धीरे और भी दृढ़ होती गई । योरपवालों ने अपनी खोज बन्द न की । वे बराबर नई नई बातों और नये नये तत्वों का