आभूषण पहनते थे । कला-कौशल में अन्य सभी देशों से
बढ़े चढ़े थे। उन्हीने बाबुल, सुमेर-प्रान्त, मिश्र और
ग्रीस आदि को सभ्य बनाया था। उस दिन,मदरास में,
प्राच्य-विद्या-विशारदों की एक समवेत सभा हुई थी।
डाक्टर गङ्गानाथ झा उसके सभापति बने थे । उस सभा
के अधिवेशन में मदरास के गवर्नर तक ने हरप्पा और
मोहन जोदरो में पाई गई वस्तुओ के आधार पर भारतीय
सम्यता की प्राचीनता की सीमा बहुत दूर तक बढ़ जाने
पर हर्ष-प्रकाशन किया था ।
पर हाय, एक महाशय आर्यों के वंशजो के इस सारे हर्ष को विषाद में बदल देना चाहते हैं । आपका नाम है-डाक्टर सुनीतिकुमार चैटजी, एम०ए०, डाक्टर आऊ लिटरेचर अर्थात् साहित्याचार्य । आप कलकत्ताविश्वविद्यालय में अध्यापक है । आपने अँगरेज़ी के माडर्नरिव्यू नामक मासिक पत्र में एक लम्बा लेख लिखा है । वह ग़ज़ब ढानेवाला है | आप जानते है, उसमें डाक्टर साहव ने क्या लिखा है ? उसमें लिखा है यह कि हरप्पा आदि में जो पुरानो वस्तुएँ मिली हैं वे आर्यों की नहीं। आदिम भार्यों को, ऐसी चीज़े बनाने और रखने की तमीज़ ही न थी। वे चीजें तो हैं द्राविड़ों की अथवा द्राविड़ों की न सही उन पुराने भारतवासियों की जो आर्यों के आगमन के पहले ही यहाँ रहते थे ! बाबुल,