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पुरातत्व-प्रसङ्ग


सभ्यता का सूचक ऋग्वेद हमारे बहुत बड़े गौरव की गवाही दे रहा है। जिस समय प्राचीन आर्य्यों के ये दल इधर-उधर विखर कर जा बसे उस समय आसीरिया मिस्र, वाबुल, इराक़ आदि के निवासी महा असभ्य थे। उनमें आर्य्यों की सभ्यता के सदृश सभ्यता का कहीं नामो-निशान तक न था।

खैर, आर्य्यो का दल जो भारत में आया उसने देखा के यहाँ कोलों, भोलों, भरों भौर द्राविड़ों का दौर-दौरा है। अतएव उन्होंने इन लोगों से कहा--चलो, हटो, भागो, हमारे लिए रहने को जगह दो। ये बेचारे असभ्य कोल, भील आदि सभ्य आर्य्यों का मुकाबिला न कर सके। कुछ तो लड़ाई-झगड़े में मर मिटे, कुछ जंगलों के भीतर अगम्य जगहों में जाकर रहने लगे, कुछ दक्षिण की तरफ ऐसी जगहों को बढ़ गये जहाँ आर्य्यों की पहुँच न थी। जो रह गये उन्हे आर्यों ने अपना दास बनाकर उन्हे शूद्रत्व प्रदान किया।

यह है उन अनुमानों या सिद्धान्तो का सार जो आज तक आर्यों के निवासस्थान, स्थानान्तर-गमन और भारत में आगमन के सम्बन्ध में कुछ समय पूर्व तक निश्चित हुए थे। इन बातों को सुन-सुन कर कितने ही भारतवासी इनकी सचाई में सन्देह करते थे। वे कहते थे कि जिन आर्य्यों का गौरव चिन्ह ऋग्वेद के सदृश प्राचीन