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पुरातत्त्व-प्रसङ्ग


चुनवा दिया और चुनी हुई जगह पर बेल-बूटे और चित्र खिंचा दिये । यह इसलिए किया, जिसमें वह दीवार-सी मालूम हो; किसी को यह सन्देह न हो कि यह गुफा है भौर इसके भीतर पुस्तकें भरी हुई है । मुसलमानों ने पुस्तकादि के इस संग्रह के स्वामी बौद्धो की क्या दशा की, कुछ मालूम नही । तब से १९०६ ईसवी तक यह गुफा बराबर बन्द ही रही।

इस गुफा के भीतर कोई १५ हजार पुस्तकें संस्कृत, प्राकृत, चीनी, तिब्बती तथा कई अन्य भज्ञात भाषाओं और लिपियो मे-मिली । रेशम के टुकड़ो पर खिचे हुए सैकड़ी अनमोल चित्र भी प्राप्त हुए । पुस्तकें सभी ग्यारहवी सदी के पहले की है। कितनी ही ब्राह्मी लिपि मे हैं । अधिक्षतर पुस्तको का सम्बन्ध बौद्ध धर्म से है । परन्तु काव्य, साहित्य, इतिहास, भूगोल, दर्शन भादि शास्त्रों से भी सम्बन्ध रखनेवाली पुस्तकें इस पुस्तकालय से मिली । संस्कृत-भाषा में लिखी हुई कितनी ही पुस्तके इसमें ऐसी हैं जो भारत में सर्वथा अप्राप्य है । यहाँ तक कि इसकी अनेक पुस्तकें, जो चीनी भाषा में हैं, चीन में भी दुर्लभ क्या अलभ्य ही हैं । पुराने बही-खाते, रोजनामचे और दस्तावेज़ तक यहाँ मिलीं। इन सबका प्रकाशन धीरे धीरे हो रहा है। ।