लैंड के भी कुछ पुरातत्त्वज्ञों ने उस रेगिस्तान में पदार्दण
करके वहाँ का कुछ हाल लिखा। इस तरह, धीरे धीरे,
लोगो का कौतूहल बढ़ता ही गया। अन्त में रूसी विद्वान्
रैडलफ ने, १८९९ ईसवी में, प्रलतत्वविशारदो की एक
सभा में, इस बात का प्रस्ताव किया कि पूर्वी और
सध्य-एशिया के खंडहरों की बाकायदा जांच की जाय।
यह प्रस्ताव "पास" हो गया। तब से इन प्रान्तो को
जाँच के लिए कई देशों के विद्वानों के यूथ के यूथ वहाँ
पहुंचे और अनेक बहुमूल्य पुस्तकों, मूर्तियों, चित्रों आदि
का पता लगा कर उन्होने उन पर बड़े माके के लेख
प्रकाशित किये। यहाँ तक कि सुदूरवर्ती जापान तक ने
कई विद्वानों को भेजकर वहाँ खोज कराई वे लोग भी
कितनी ही बहुमूल्य सामग्री अपने देश को ले गये।
१८९१ ईसवी मे ब्रिटिश गवर्नमेन्ट के एक दूत
चीनी तुर्किस्तान में थे। उनका नाम था कप्तान बाबर।
उन्हें भोजपत्र पर लिखा हुआ एक ग्रन्थ मिला। उसे
उन्होंने बंगाल की एशियाटिक सोसाइटी को भेज दिया।
डाक्टर हार्नली ने उसे पढ़ा। मालूम हुभा कि वह गुप्त-
नरेशों के समय की देवनागरी लिपि में है और ईसा की
चौथी शताब्दी में लिखा गया था। अतएव उसकी रचना
उसके भी बहुत पहले हुई होगी। एक आध को छोड़
कर इससे अधिक पुरानी हस्तलिखित पोथी भारत में