कहीं कहीं जमीन के नीचे भूतलवर्तिनी कोठरियों के
भीतर, और कहीं कहीं पत्थर की सन्दूकों के भीतर रख
कर उन्हें छिपा दिया। उनमें से अनेक वस्तु-समुदाय तो
अवश्य ही नष्ट हो गये, पर जो गुफाओं के भीतर और
पृथ्वी के पेट में छिपा दिये गये थे वे अब धीरे धीरे
निकलते जाते हैं। इसका विशेष श्रेय बौद्ध और हिन्दू-
धर्म्म के अनुयायियों को नहीं; योरप के पुरातत्त्व प्रेमी
ईसाइयों को है। लाखों रुपया खर्च करके और कठिन से
भी कठिन क्लेश उठाकर ये लोग उन निर्जन वनों और
रेतीले स्थानों के ध्वंसावशेष खोद खोद कर उन हजारों
वर्ष के पुराने ग्रन्थो और काग़ज-पत्रों को जमीन के पेट
से बाहर निकाल रहे हैं। उनमें से कितने ही तो विवरण
और टीका-टिप्पणी-सहित छपकर प्रकाशित भी हो गये।
परन्तु अभी अनन्त रत्रराशि प्रकाश में आने को बाकी है।
१८७९ ईसवी में जर्म्मन विद्वान डाक्टर रेजल का ध्यान चीनी तुर्किस्तान के उजाड़-खण्ड की ओर आकृष्ट हुआ। वे वहाँ गये। उन्हें वहाँ कितने ही प्राचीन खँडहरों का पता चला। इसके बाद रूस के रहनेवाले दो पुरातत्ववेत्ताओ ने, १८५६-९७ ईसवी में, उसी तुर्किस्तान के तुरफान-प्रान्त में खोज की। उन्हें, अपनी खोज में, जो जो चीज़ें मिली उनका विस्तृत वर्णन उन्होंने अपनी भाषा में प्रकाशित किया। उनकी देखादेखी फिन-