पृष्ठ:पुरातत्त्व प्रसंग.djvu/११

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पुरातत्त्व का पूर्वेतिहास


प्राप्त कर सकते हैं और उस समय के इतिहास की रचना भी कर सकते हैं। यह सामग्री प्राचीन ग्रन्थ, शिलालेख, ताम्रपत्र, कीर्तिस्तम्भ, सिक्के, मन्दिर, स्तूप, किले, प्रासाद आदि के रूप में विद्यमान है। परन्तु इतिहास के महत्त्य से अनभिज्ञ होने के कारण हम लोगों ने इस मामग्री से भी लाभ नहीं उठाया--अपने आप इतिहास-रचना का सूत्रपान तक नहीं किया। भारत के प्राचीन इतिहास के निर्म्माण का पाठ हमें पढ़ाया है सात समुद्र पार रहनेवाले पश्चिमी देशों के निवासियों ने। उन्होनें इसका पाठ ही हमें नहीं पढ़ाया, इतिहास का कुछ अंग स्वयं ही निर्म्माण करके हमारे सामने रख भी दिया है। इसके आरम्भ का श्रेय इंगलि-स्तान की निवासिनी अंगरेज जाति की है। अतएव इस विषय में हम लोग उसके कृतज्ञ हैं।