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अफ़ग़ानिस्तान में बौद्धकालीन चिन्ह।


थी। छोटी छोटी मूर्तियाँ तो और भी कितनी हीं थीं। १८७९ ईसवी के अफगा़न-युद्ध के समय जनरल के ने जो मूर्ति यहाँ देखी थी उसका वर्णन उन्होंने भी अपने, एक लेख में, किया है। यह मूर्ति वहाँ अब तक विद्यमान है। बामियान के निवासी उसे अज़दहा कहते हैं। उन्होने यह कल्पना कर ली है कि किसी मुसलमान फक़ीर ने इस अज़दहे को मारा था। उसी की यह यादगार है।

बौद्धों के ज़माने में जो बामियान धन-लक्ष्मी का विलास-स्थान था और जहाँ हज़ारों कोस दूर से यात्रियों के जत्थे आया करते थे, उसे, ईसा की आठवीं सदी में, अरबों ने उजाड़ दिया। अनन्त बौद्ध भिक्षुओं को उन्होंने तलवार के घाट उतार दिया। उनकी इमारतों को तोड़ फोड़ कर जमींदोज़ कर दिया। इसके कुछ समय पीछे, बामियान की तराई की दूसरी तरफ़, शहरे-गोल-गोला नाम का एक नगर बसा। परन्तु बारहवीं सदी में चंग़ेजखाँ मंगोल ने उसे भी विध्वंश करके बौद्धों के वामियान की दशा को पहुँचा दिया। काल बड़ा बली है। वह सदा बनाने और बिगाड़ने ही के खेल खेला करता है। अभ्रङ्कष प्रासादों और दुर्दान्त सम्राटों को देख देखकर वह हँसता है। वह कहता है—तुम्हारी यह शानो-शौक़त है कितने दिन के लिए! इन्हीं खेलों