गान्धारशैली की शिल्पकला पाई जाती है। पर जो चिन्ह बामियान और उसके पास-पड़ोस के स्थानों में प्राप्त हुए हैं वे बौद्ध-कालीन शिल्प के सच्चे नमूने है। हाँ, उनमें ग्रीस अर्थात् यूनान की कारीगरो का भी कुछ असर पड़ा मालूम हाता है।
सम्राट् कनिष्क का ग्रीष्म-निवास, कपिशा नाम के नगर में था। जहाँ पर वह था वहाँ अब बेगरम नाम का नगर आबाद है। जिस नगरहार में दीपङ्कर बुद्ध ने, अपनी तपस्या के प्रभाव से, कितनी ही आश्चर्य-जनक घटनायें कर दिखाई थीं वही अब जलालाबाद के नाम से विख्यात है। हिद्दा वह जगह है जहाँ गौतम बुद्ध के भौतिक शरीर का कुछ अंश रक्खा गया था और जिसके दर्शनों के लिए सैकड़ों कोस दूर से बौद्ध-यात्री आया करते थे। इन स्थानों में जो स्तूप, विहार, चैत्य और मूर्तियाँ मिली हैं वे बिलकुल वैसी ही हैं जैसी कि तक्षशिला और तख्ते-बाही आदि के धुस्सों को खोदने से मिली हैं। हिद्दा में तो पत्थर की कारीगरी की कुछ ऐसी भी चीज़े प्राप्त हुई हैं जिनकी बराबरी भारत में प्राप्त हुई गान्धारशैली की कारीगरीवाली चीज़ें भी नहीं कल सकतीं।
हिदा में जिस स्तूप को फरासीसी पुरातत्वज्ञों में खोज निकाला है उसे वहाँ वाले अपनी भाषा, पश्तो में