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पुरातत्त्व-प्रसङ्ग


ईसा के आठवें शतक में अरबों ने अफ़ग़ानिस्तान पर आक्रमण किया। धीरे धीरे वे लोग मध्य-एशिया तक जा पहुँचे। अतएव उन देशों में फैली हुई भारतीय सभ्यता पर आघात होने लगे। तथापि भारतीय विद्या और कलाकुशलता की क़दर उन लोगों ने भी की। ख़लीफ़ा हारूनुर्रशीद के ज़माने में भारतीय विद्वानों और कला-कोविदों का सम्मान बग़दाद में भी हुआ। वहाँ उन्होंने अरबों पर भी अपनी विद्वत्ता की धाक जमाई।

नवीं सदी में सम्राट् कनिष्क का वंशज अफ़ग़ानिस्तान और उसके आस पास के प्रान्तों का अधीश्वर था। उसकी राजधानी काबुल नगर में थी। ८७० ईसवी में अरबों के सेनानायक याकूब-ए-लैस ने उसे परास्त करके उसका राज्य छीन लिया। तभी से वहाँ इस्लामी राज्य की नीव पड़ी। परन्तु यह न समझना चाहिए कि, इस कारण, उन देशों का सम्पर्क भारत से छूट गया। नहीं, भारतीय पण्डितों और भारतीय शास्त्रवेत्ताओं की कदर करना उस समय के मुसलमान बादशाहों और ख़लीफ़ों ने बन्द नहीं किया। वे उन्हें बराबर अपने देश में सादर बुलाते और उनकी विद्या-बुद्धि से लाभ भी ख़ूब उठाते रहे। यह उस समय की बात है जब अफ़ग़ानिस्तान तथा उसके पास-पड़ोस के प्रान्तों में हिन्दुओं और बौद्धों