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पुरातत्त्व-प्रसङ्ग


नो वह सब एकत्र रहता है और आगे की पीढ़ियों के काम आता है।

दुःख की बात है कि हमारे पूर्वजों का रचा हुआ सच्चा और विस्तृत इतिहास उपलब्ध नहीं। अपने देश के ज्ञान-समूह का सञ्चय उन्होंने इतिहास-मञ्जूपा के भीतर नहीं बन्द किया और यदि किया भी हो तो उसका कहीं भी अस्तित्व नहीं पाया जाता। दूर की बातें जाने दोजिए, सौ दो सौ वर्ष पहले की भी घटनाओं का यथार्थ वृत्तान्त प्राप्त नहीं। और कहाँ तक कहें जिसके संवत् का उल्लेख हम लोग प्रतिदिन सङ्कल्प में करते हैं उस तक के विषय में निश्चयपूर्वक हम यह नहीं कह सकते कि वह कौन था, कब हुआ और क्या क्या काम उसने किये। हमारे इस दुर्भाग्य का भी भला कहीं ठिकाना है! भोज- प्रबन्ध आदि के ढँग को जो पुस्तकें मिलती हैं वे इतिहास नहीं। वे तो कल्पित कहानियों की परम्परा-मात्र हैं। भोज- प्रबन्ध में कालिदास, बाण, माघ आदि कवि भोज के खमकालीन बताये गये हैं, यद्यपि वे उसके सैकड़ों वर्ष पहले हो चुके थे!

यद्यपि हमारे पूर्वजों का लिखा हुआ यथार्थ इतिहास उपलब्ध नहीं तथापि उनकी निर्माण की हुई ऐसी भनन्त सामग्री विद्यमान है जिसकी सहायता से हम प्राचीन समय की घटनाओं का बहुत कुछ ज्ञान