जेन्टिलमैन पढे हैं। आपको यह भेद मालूम नहीं। यह तो आप जानते हैं कि बम्बई का सट्टा जगद् विख्यात है, और सब लोग जाना है कि बम्बई के अमीरों का एकमात्र धन्धा सट्टा है। जो लोग जरा अपने को चालाक समझते हैं वे बम्बई में आकर खर्च बना लेने की फिक्र में रहते हैं। यहाँ के यार दोस्त उन्हें रई, सोना या शेअर का सट्टा करने की सलाह देते हैं। शेअर के बाजार में यह आम कायदा है कि कम्पनी क्या है, है भी या नहीं, इसे कोई नहीं देखता। जिस कम्पनी के शेअरों का बाजार में भाव बढ़ गया, लोग समझते हैं वह खूब नफा कमा रही है, उसी के शेअर आँख बन्द कर खरीद लेते हैं। बाजार में मि० सिन्हा ऐसी रेल-पल मचा देगे कि हमारी कम्पनी का शेअर वहाँ गया नहीं और ऊँचे भाव में बिका नहीं। बस लोग हाथों- हाथ खरीदने लगेंगे और हम अपने अपने शेअर बेंच डालेंगे।" मि० दास ने आँख फाड़कर मि० जेन्टलमैन को घूरकर देखा और कहा-"और कम्पनी का काम स्टार्ट होगा? मशीनरी कहाँ से आएगी। बिल्डिंग भी तो बनेगी?" मि० जेन्टलमैन ने कुटिल हास्य से कहा-"उसकी कोई जरूरत नहीं। ज्योंही हमारे शेअरों का रुपया हाथ लग जाय, कम्पनो दिवालिया हो जाएगी।" मि० सिन्हा स्छल पड़े। उन्होंन का-"वन्डरफुल । मैं सब कुछ समझ गया मि० दास, मैं तुम्हें सब समझा दूंगा ? आओ, हाथ मिलाओ दोस्त ।" तीनों ने हाथ मिलाया, परस्पर भेद-भरी दृष्टि से देखा और अंतरङ्ग सभा विसर्जित की।
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